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    ब्र्जस्थ मैथिल ब्राह्मण

    ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण वे ब्राह्मण हैं जो गयासुद्दीन तुग़लक़ से लेकर अकबर के शासन काल तक तिरहुत (मिथिला) से भारत की तत्कालीन राजधानी आगरा में बसे तथा समयोपरान्त केन्द्रीय ब्रज के तीन जिलो मे औरंजेब के कुशासन से प्रताडित होकर बस गये। ब्रज मे पाये जाने वाले मैथिल ब्राह्मण उसी समय से ब्रज मे प्रवास कर रहे हैं। जो कि मिथिला के गणमान्य विद्वानो द्वारा शोधोपरान्त ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मणो के नाम से ज्ञात हुए। ये ब्राह्मण ब्रज के आगरा, अलीगढ, मथुरा और हाथरस मे प्रमुख रूप से रहते हैं। यहा से भी प्रवासित होकर यह दिल्ली, अजमेर, जयपुर, जोधपुर बीकानेर बडौदरा, दाहौद्, लख्ननऊ, कानपुर आदि स्थानो पर रह रहे हैं। मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने मिथिला सहित सम्पूर्ण भारत पर अपने शासन काल में अत्याचार किया इसके अत्याचार से पीड़ित होकर बहुत से मिथिलावासी ब्राह्मण मिथिला से पलायन कर अन्य प्रदेशों में बस गए ब्रिज प्रदेश में रहने वाले मैथिलों व मिथिलावासी मैथिलों का आवागमन भी बंद हो गया ऐसा १६५८ ई० से लेकर १८५७ की क्रान्ति तक चलता रहा ण् १८५७ ई० के बाद भारतीय समाज सुधारकों ने एक आजाद भारत का सपना देखा था मिथिला के ब्राह्मण समाज भी आजाद भारत का सपना देखने लगे स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती ने ठीक इसी समय जाति उत्थान की आवाज को बुलंद किया उन्होंने जाति उत्थान के लिए सम्पूर्ण भारत में बसे मिथिला वासियों से संपर्क किया जिसका परिणाम यह हुआ की औरंगज़ेब के समय में मिथिलावासी और प्रवासी मैथिल ब्राह्मणों के जो सम्बन्ध टूट गए थे वह फिर से चालु हो गए उन्ही के प्रयासों से अलीगढ के मैथिल ब्राह्मणों का मिथिला जाना और मिथिलावासियों का अलीगढ आना संभव हुआ इसी समय स्वामी जी ने मिथिला से लौटकर अलीगढ में मैथिल सिद्धांत सभा का आयोजन किया सिद्धांत सभा के कार्यकर्ताओं और मिथिलावासी रुना झा द्वारा १८८२ से १८८६ के बीच पत्र व्यवहार आरम्भ हुआ।

    गयासुद्दीन तुगलक के समय मैथिल ब्राह्मण का ब्रज में सामूहिक प्रवास-

    इतिहास बताता है कि सम्वत 1381 में मिथिला पर कर्णाट वंशीय राजा हरी सिंह जी का शासन था, उसी समय दिल्ली में गयासुद्दीन तुगलक का शासन था। गयासुद्दीन तुगलक विजय प्राप्त करने के बाद तिरहुत मार्ग से दिल्ली को आ रहा था। रास्ते में उसे मिथिल के वैभव की जानकारी हुयी, मुगल बादशाह ने विशाल सेना के साथ मिथिला पर आक्रमण कर दिया। कई दिनों के युद्ध के बाद महाराजा हरी सिंह ने अपनी सेना के पैर उखड़ते देख हार स्वीकार कर ली। परिणामतः मिथिला मुगलों के अधीन हो गयी।
    मिथिला पर अपने आधिपत्य के बाद गयासुद्दीन ने हिन्दुओं विशेषकर मिथिला के ब्राह्मण पर अत्याचार शुरू कर दिये। मिथिला के सभी देवालयों पर देव पूजा पर प्रतिबन्ध लगा दिया, ब्राह्मणों को चन्दन लगाना, यज्ञोपवीत धारण करना, सार्वजनिक धर्मानुष्ठानों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। गौमांस भक्षण व बलात इस्लाम धर्म ग्रहण करने को अथवा मृत्यु दण्ड को बाध्य किया जाने लगा। मुगल शासक की इस अत्याचारी नीति के कारण जब मिथिला के ब्राह्मणों ने देखा कि मिथिला में रहकर अब धर्म पालन सम्भव नहीं, तब प्राणों की रक्षार्थ व स्वधर्म पालन हेतु मिथिला छोड़ इधर-उधर प्रस्थान किया। आर्थिक दृष्टि से कमजोर मैथिल ब्राह्मण वेश बदल मिथिला के आस पास क्षेत्रों में छिप गये व आर्थिक दृष्टि से मजबूत 9 गोत्रों के 75 परिवार मिथिला छोड़कर तीर्थाटन करते हुए लगभग 3 वर्ष बाद (सम्वत 1385 में) मथुरा पहुंचे, मथुरा भ्रमण के बाद मथुरा के निकट विश्वावली गाँव में पड़ाव डाला और विचार विमर्श किया कि जब तक मिथिला की स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, तब तक हमें बृज क्षेत्र में ही प्रवास करना चाहिये। इस प्रकार मैथिल ब्राह्मणों का मिथिला से पलायन कर बृज क्षेत्र में यह प्रथम प्रवास कहा जाता है।

    अकबर काल में सामूहिक प्रवास-

    मैथिल ब्राह्मणों का बृज में सामूहिक प्रवास अकबर के शासन काल में हुआ। इतिहास बताता है जब अकबर (सन् 1556) में दिल्ली के सिंहासन पर बैठा तो उसने देखा कि विद्वता के क्षेत्र में मैथिल ब्राह्मण सर्वोच्च हैं, बड़़े-बड़़े धर्मानुष्ठान भी मैथिल ब्राह्मणों के नेतृत्व में होते हैं। धार्मिक विषयों के विवादास्पद होने पर मैथिल ब्राह्मणों का निर्णय सर्वमान्य होता है। तब अकबर ने देश के यत्र-तत्र फैले मैथिल ब्राह्मणों को मिथिला में स्थापित किया। अकबर ने अपने दरबार में धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, दर्शन, व्याकरण, ज्योतिष, सामुद्रिक शास्त्र के सर्वोच्च विद्वान राजकीय कार्योें के सहयोग के लिए नियुक्त किया था, जिन्हें नवरत्न कहा जाता था। इन नवरत्नों में 5 मैथिल ब्राह्मण थे, यथा पं0 पुरूषोत्तम झा, पं0 देवी मिश्र, पं0 रघुनन्दन झा, पं0 जीवन नाथ मिश्र, पं0 शिवराम झा।
    एक बार सम्राट अकबर को पटना में कई दिन रूकना पड़ा था। पटना में ही अकबर को अपने सलाहकारों में मिथिला के ब्राह्मणों की प्रशंसा व विद्वता के बारे में जानकारी हुयी। प्रशंसा सुनकर अकबर ने शीर्षस्थ मैथिल ब्राह्मण, जो उस समय आगरा, अलीगढ़़, मथुरा आदि बृज मण्डल में फैले हुए थे, उन्हें आमंत्रित कर हिन्दू धर्म के विभिन्न विषयों पर गहन चर्चा की, मिथिला के इन ब्राह्मणों से प्रभावित होकर पं0 रघुनन्दन झा, पं0 जीवननाथ मिश्र व पं0 शिवनारायन झा को सपरिवार अपने साथ आगरा राजदरबार में लाकर इन तीन मैथिल पण्डितों से नित्य ज्योतिष, वेद, उपनिषद, स्मृतियों आदि हिन्दू ग्रन्थों पर चर्चा करता था, कुछ समय पश्चात अकबर ने उक्त पण्डितों के परामर्श देने पर मिथिला से 71 मैथिल ब्राह्मण को राजा टोडरमल द्वारा सपिरवार आगरा बुलवाया। जो बाद में आगरा व फतेहपुर सीकरी में बसाये गये थे। औरंगजेब के शासनकाल में इनका उत्पीड़न हुआ और ये यमुना के किनारे बसे केन्द्रीय ब्रजमंडल के गावों में छिपकर रहे। विभिन्न ग्रन्थों के अवलोकन से पता चलता है कि नौ गोत्र के मैथिल ब्राह्मण ब्रज क्षेत्र में बसे थे। उनमें भारद्वाज गोत्र के 9, वत्स गोत्र के 27, सावर्ण गोत्र के 3,गर्ग गोत्र के 1, शाण्डिल्य गोत्र के 25, काश्यप गोत्र के 20, कात्यायन गोत्र के 4, पाराशर गोत्र के 5, गौतम गोत्र के 1,कौशिक गोत्र के 1, रिकार्ड के अनुसार 73 मूलग्राम के 101 परिवारों की ब्रज क्षेत्र में बसने की जानकारी मिलती है।
    हजारी बाग जिले के अष्टग्राम, मैमन सिंह, कूच विहार, दार्जलिंग, मालदह जिले के छुटमुटा, अढ़ाईडांगा आदि गांवों मे मिथिला वासियों की जमींदारी थी। पुरलिया के शिखर प्रान्त में दो हजार मैथिल हैं। संथालप्रगन्ना, गया, शाहाबाद, मानभूमि आादि में मिथिलावासियों की शाखा है। बिहार के अतिरिक्त पूरे भारतवर्ष में मिथिला के निवासी जाकर बस गये हैं। उत्तर प्रदेश में बलिया, औड़िहार, नैनी, अयोध्या, बस्ती, आगरा, अलीगढ़, झांसी, मथुरा, बांदा, बनारस आदि जिलों में। राजस्थान में अजमेर, जयपुर, अलवर, जोधपुर, बीकानेर, गुजरात में बड़ौदा, दोहद, मैनपुरी, अहमदाबाद, सूरत, मध्यप्रदेश में जबलपुर, नागपुर, मण्डला, बंगाल मे ंकलकत्ता इत्यादि अनेक स्थान हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक मिथिला वासियों की संतान या पूर्वज मिलेंगे। ये लोग या तो जीवकार्थ अथवा भारतवर्ष के राजा महाराजाओं से संरक्षित होकर इन स्थानों में बस गये। प्रवासी मैथिलों के धीरे-धीरे संगठन और समाज सुधकर करना आरम्भ कर दिया है जैसा कलकत्ता में मैथिल संघ, उत्तर प्रदेशीय सभा आदि।
    सन् 1911 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश के निम्न जिलों में मैथिल ब्राह्मणों की संख्या निम्न प्रकार थी। (1) अलीगढ़ में 2133, (2) आगरा में 840, (3),बुलन्दशहर में 808, (4) मथुरा में 309, (5), झांसी में 269, (6), बलिया में 186। इनके अतिरिक्त अन्य जिलों में भी थोड़ी थोड़ी संख्या मे मैथिल ब्राह्मण बसे थे। बाद में मिथिला से और ब्रज क्षेत्र से मैथिल भारत के अन्य जिलों में भी जीविकार्थ बस गये थे। वर्तमान में मैथिल ब्राह्मणों की संख्या 3 करोड़ है जो ब्राह्मणों में सबसे अधिक है।
    मिथिला की पाण्डित्य परम्परा रही है कि मिथिला मनीषियों की एक विशेषता सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है कि उन्होंने जहां भी निवास किया वहां सर्वजन हिताय एवं लोक कल्याण का ही कार्य किया’।