मैथिल हित साथनः- जाति का सर्वप्रथम पत्र ‘‘मैथिल हितसाथन’’ था, जिसका प्रकाशन सन् 1905 ई0 में हुआ। अलवर के न्याय मंत्री पं0 रामभद्र झा इसके प्राण थे, वे अपने युग के श्रेष्ठ निबन्धकार थे और उन्होंने अनेक लेखकों को मैथिली में लिखने के लिए प्रोत्साहन दिया। ‘‘मैथिल हितसाथन’’ में अत्यन्त विचारोत्तेजक निबन्ध प्रकाशित हुआ करते थे। इसके लेखकों में मिथिला के अनेक मूर्द्धन्य साहित्यकार थे, जिनमें कवीश्वर चंदा झा तथा यदुनाथ झा के नाम उल्लेखनीय है। यह पत्र मैथिली पत्रकारिता के शौशव काल का द्योतक है।
मैथिल प्रथाः- पं0 रामभद्र झा के उपरान्त पत्रकारिता के क्षेत्र में जैत मथुरा निवासी पं0 रामचन्द्र निवासी ‘‘चन्द्र’’ ने बडा महत्वपूर्ण कार्य किया। मिश्र जी अपने युग के कर्मठ साहित्यकार थे। उन्होने सन् 1914 ई0 में मैथिली में लिखना आरम्भ किया था। उससे पहले वे हिन्दी में लिखते थे। उन्होने लगभग 4 वर्ष तक अजमेर से तथा 1 वर्ष तक आगरा से मैथिल प्रभा का प्रकाशन किया।
मैथिल प्रभाकरः- रामचन्द्र मिश्र ने इसके बाद अलीगढ़ से ‘‘मैथिल प्रभाकर’’ किया। अपने पत्रों में उन्होंने जातीय संगठन पर विशेष बल दिया। ये पत्र हिन्दी तथा मैथिली दोनों ही भाषाओं की सामिग्री से युक्त होते थे। इन पत्रों में पूर्वाल्लखित चन्दा झा अतिरिक्त कुमार गंगा नंद सिंह ‘भुवन’ आदि मिथिला वासी लेखकों के लेख भी प्रकाशित होते थे।
मैथिल बन्धुः- सन् 1935 ई0 में अजमेर से ‘‘मैथिल बन्धु का प्रकाशन आरम्भ हुआ, जो पत्रकारिता के क्षेत्र में नये का द्योतक है। इसके सम्पादक पं0 रघुनाथ प्रसाद तथा लक्ष्मी पति सिंह थे। इसमें जाति के प्रमुख व्यक्तियों के जीवन चरित्र तथा खोज पूर्ण लेख प्रकाशित होते थे। इसका प्रकाशन लगभग आठ वर्ष तक होता रहा। इसके बाद सन 1947 ई0 में इसका प्रकाशन पुनः आरम्भ हुआ। इसमें मैथिली भाषा को बहुत प्रोत्साहन दिया गया था।
मैथिल युवकः- अजमेर से सन् 1938 ई0 में पं0 चुन्नीलाल झा ने मैथिल युवक का प्रकाशन किया। यह पत्र तीन वर्ष तक चलता रहा।