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    5-   मीमांसा के जनक जैमिनी

    जैमिनि मीमांसा के जनक हैं, लेकिन दूसरों की दृष्टि में कुमारिल काल से पूर्व के इस शास्त्र की केवल एक महत्वपूर्ण कड़ी है और सूत्रों के लेखक हैं। डा0 उमरमना झा के अनुसार जैमिनी मिथिला से आये थे। आचार्य जैमिनि की गणना वज्रवारको में है। ये महर्षि कृष्ण द्वैपायन श्री व्यासदेव के शिष्य थे। उनसे आपने सामवेद और महाभारत की शिक्षा पायी थी। ये ही पूर्व मीमांसा दर्शन के रचियता हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने ’भारत संहिता’ की भी रचना की थी जो जैमिन भारत के नाम से प्रसिद्ध है। आपने द्रोणपुत्रों से मार्कण्डेय पुराण सुना था। इनके पुत्र का नाम सुमन्त और पौत्र का नाम सत्वान था। इन तीनों ने वेद की संहिता बनायी है। हिरण्यनाभ, पैष्यत्र्जि और भवन्त्य नाम के इनके तीनों शिष्यों ने इन संहिताओं का अध्ययन किया था। इन्होंने 1100 सूत्रों में फलित ज्योतिष के विशिष्ट व निराले सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। ग्रन्थ का मुख्य विषय जीविका, आर्थिक स्थिति, दाम्पत्य जीवन, आयु निर्णय का प्रामणिक मार्ग, माता-पिता, संतान का भाग्य, स्त्री जातक के गुण व विशेष नियम, प्रसव पूर्ण विस्तृत फल।

    जैमिनि के ग्रन्थ-    जैमिनि के नाम पर अनेक ग्रन्थ पाये जाते हैं जैसे (1) जैमिनीय शाखा (सामवेद की) जैमिनीय ब्राह्मण, (2) जैमिनीयोपनिषद ब्राह्मण, (इसी को तलबकार उपनिषद ब्राह्मण भी कहते है), (3) जैमिनीय कोशसूत्र, (4) जैमिनीय निघन्टु, (5) जैमिनीय पुराण, (6) ज्येष्ठ माहात्म्य, (7) जैमिनीय भागवत, (8) जैमिनीय सूत्र (ज्योतिष), (9) जैमिनि सूत्र कारिका, (10) जैमिनिस्मृति, (11) जैमिनिस्तोत्र, (12) जैमिनीय श्रोत सूत्र, (13), जैमिनीय गृहय सूत्र इत्यादि।  जैमिनि के नाम पर संगीत में भी एक ‘राग’ पाया जाता है। जिसे ‘जैमिन कानडा’ कहते हैं।