वैशेषिक दर्शन के संस्थापक महर्षि कणाम
वे हिन्दू दर्शन शास्त्र में वैशेषिक के संस्थापक थे। वे मानते थे कि प्रत्येक आत्मा का परमात्मा से अलग व्यक्तित्व है। उनका नाम कणाद, जोकि उनके विरोधियों ने उनमें सिद्धान्तों के उपहास में दिया था। उनका वास्तविक नाम कश्यप लगता है। उनका नाम उलूकमुनि भी बताते हैं। वे बाजार में क्रय विक्रय समाप्त होने के पश्चात जो दाने मार्ग में सब के चले जाने के बाद बिखरे होते थे उनको चुनकर लाते थे। इन कणों पर निर्वाह करने के कारण उनको कणाद कहा जाता है। ऐसे वीत राग तापस से कैसे आशा की जा सकती है कि वे अपना कोई परिचय छोड़ जायेगें। भारतीय संस्कृति में नश्वर शरीर के नाप और रूप के लिये आसक्ति को स्थान कहाँ। उनका दार्शनिक प्रणाली का इतना विवरणात्मक था कि उसने बाद में उनके वास्तविक नाम का स्थान ले लिया। यह बाद में गंभीर और यथार्थ चिन्तन का पर्याव बन गया।
वैशेषिक का उद्भव लगभग बुद्ध और महावीर के आसपास हुआ (ईसा से छठी पांचवी शताब्दी से पूर्वद्ध। वैशेषिका सूत्र न्याय सूत्र से पहले का लगता है और संभवः ब्रह्म सूत्र के समकालीन है। वैशेषिका सूत्र पर शंकर मिष का उपस्कार एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। वैशेषिक एवं न्याय के आवश्यक सिद्धान्त समान हैं जैसे प्रकृति एवं स्वयं के गुण और विश्व का अणुविक सिद्धान्त।
वात्सायन के बाद वे (कणाद) न्याय दर्शन से बहुत अधिक प्रभावित थे। उनकी चौथी शताब्दी के अन्त से सम्बद्ध किया जाता है। कणाद उलूक, काश्यप, पैलुक आदि नामों से भी प्रख्यात हैं।