ब्राह्मणों की महिमा
पृथ्वी में जितने तीर्थ है वे सब तीर्थ समुद्र में मिलते हैं, समुद्र में जितने तीर्थ हैं वे सब ब्राह्मण के पाद में और चारों वेद उसके मुख में है और अंग में सब देवता आश्रय करके रहते हैं इस वास्ते ब्राह्मण की पूजा करने से सब देवों की पूजा होती है, पृथ्वी पर जो ब्राह्मण है, वह विष्णु रूप हैं उनसे जिसको कल्याण की इच्छा हो, उन्हें ब्राह्मणों का अपमान व द्वेष नहीं करना चाहिए। चार वर्णों में ब्राह्मण मुख्य है व सब वर्णों का गुरू है।
यह ब्राह्मण रूपी नाव धन्य है संसार रूपी समुद्र में उसकी उल्टी ही रीति है, इसके नीचे रहने वाले तैरते हैं और ऊपर रहने वाले नीचे गिरते हैं अर्थात् ब्राह्मण के सामने जो नम्र रहते हैं, वे तर जाते हैं और जो नम्र नहीं रहते वे अधोगति को प्राप्त होते हैं।
ब्राह्मण खनि चादत्ते ब्राह्मणश्च जिघा सतिः।
रमते निन्दया चैषा प्रशंषा भामि नन्दति। विदुर नीति (1) ।। 99 ।।
जो ब्र्राह्मणों की सम्पत्ति को लेता है, ब्राह्मणों को मारने की इच्छा करता है, ब्राह्मणों की निन्दा करता है उनकी निन्दा में ही प्रसन्न रहता है और उनकी बड़ाई को पसन्द नहीं करता है।
नैतान स्मरति कृत्येषु याचित रचाभ्य सूपति
एतान दोषान्तर प्राज्ञो बुध्येद बुदध्वा विसर्जयेत्। विदुर नीति (1) ।। 100 ।।
किसी भी काम के समय पर ब्राह्मणों को स्मरण नहीं करता और ब्राह्मण जब कुछ मांगने जाते हैं तो उन पर ईष्यालु होकर क्रुद होता है। प्रत्येक विद्वान पुरूष को चाहिए कि इन दोनों को समझ ले और समझने के बाद छोड़ दे।