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    ब्राह्मणों के प्रमुख संस्कार

    संस्कार क्या है ?
    गुणों का आरोपण अथवा उसके दोषों को दूर करने के लिए जो कर्म किया जाता है उसे संस्कार कहते हैं। गौतम धर्म सूत्र में कहा गया है कि संस्कार उसे कहते हैं, जिससे दोष हटते हैं और गुणों का उत्कर्ष होता है।
    आर्य संस्कृति के अनुसार वेद, स्मृति, तत्र से सर्व मिलाकर 48 संस्कार पाये जाते हैं, किन्तु इनमें 16 प्रमुख हैं। वे इस प्रकार हैं।
    1. गर्भाधान संस्कारः- इस संस्कार में यह बताया जाता है कि आने वाली जीवात्मा परमात्मा का स्वरूप और प्रतिनिधि है।
    2. पुंस वन संस्कारः- यह तब सम्पन्न किया जाता था, जब बालक के भौतिक शरीर का निर्माण प्रारम्भ हो जाता था। इसमें ऋषियों के अनुसार औषधि सेवन यज्ञ कर्म से गर्भ पवित्र एवं शुद्ध करना था।
    3. सीमन्तो नयन संस्कारः- यह छठे तथा आठवें माह में शिशु के हित की कामना करने की प्रेरणा दी जाती थी।
    4. जात कर्म संस्कारः- यह संस्कार जन्म के तुरन्त बाद सम्पन्न होता हैं नाभि बंधन के पूर्व वेद मंत्रों के उचचारण के साथ सम्पन्न होता है।
    5. नामकरण संस्कारः- गुण प्रधान नाम द्वारा या महामानवों पर रखे नाम द्वारा यह प्रेरणा दी जाती है कि बच्चे जीवन भर उसी की तरह बनने का स्मरण रखें।
    6. निष्क्रमण व कर्ण वेधः- निष्क्रमण की अब कोई प्रासंगिकता नहीं रही। कर्ण वेध संभावित रोगों से बचाव हेतु किया जाता था।
    7. अन्नप्राशनः- इसमें प्रथम अन्न आहार ग्रहण कराने के साथ भावना यही की जाती है कि हमेशा बालक संस्कारी अन्न ग्रहण करें।
    8. चूड़ाकर्म (मुण्डन संस्कार)ः-यह संस्कार जन्म के पश्चात् वर्ष के अंत अथवा तृतीय वर्ष की समाप्ति के पूर्व सम्पन्न होता है। मुण्डन सदैव किसी तीर्थ स्थान या देवस्थल पर किया जाता है। आश्वला ग्रहय सूत्र के अनुसार चूड़ा करण से दीर्घ आयु प्राप्त होती है।
    9. कर्णवेध-6 में उल्लेख किया जा सकता है।
    10. विद्यारंभ संस्कारः-आयु के पांचवे वर्ष में यह तब सम्पन्न कराया जाता है जब बालक का मस्तिष्क शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाता है।
    11. उपनयन संस्कारः-यज्ञोपवीत धारण के साथ ही मनुष्य का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विजउच्चते। सामान्यतः 8 से 10 वर्ष आयु में यह सम्पन्न कर दिया जाता है।
    12. वेदारंभ
    13. केशान्त तथा
    14. समावर्तन संस्कार- ब्रह्मचर्य व्रत के समापन व विद्यार्थी जीवन के अन्त में सूचक के रूप में माना जाता था।
    15. विवाह संस्कार- दो आत्माओं की पवित्र बंधन प्रक्रिया अथर्ववेद कहता है- ‘समाने योकत्रे सह वो युनज्मि’’ प्रेम की अदृश्य डोरी में बंधे एक जुए में जुते दो बेलों से वर-वधू की उक्ति दी गई है।
    16. अन्त्येष्टि संस्कार- यह 16 संस्कारों में अंतिम संस्कार माना गया है। इसमें आत्माविहीन देह को सम्मान के साथ अग्नि को समर्पित कर पंच भूतों में मिला दिया जाता है।