क्षेत्राधारेण ब्राह्मणस्य भेदाः-
सृष्ट्यिारम्भे ब्राह्मणस्य जातिरेका प्रकीर्तिता।।
एवं पूर्व जातिरेका देशभेदादद्विधाऽभवत्।।
गौड़ द्राविड़ भेदेन देशकाले समन्विता।।
अर्थ- सृष्टि के आरम्भ काल में सम्पूर्ण भारतवर्ष के सभी नागरिक भारतीय कहलाते थे, एक मात्र सनातन धर्म रूपेण धर्म-कर्म में लीन रहकर भगवद् पूजा पाठ कर अपने को कृतार्थ समझते थे। केवल ब्राह्मण द्वारा प्रतिपादित वर्णानुरूप ही कार्य करते थे। पश्चात् सभ्यता, शिक्षा की दृष्टि से भारतवर्ष को खण्डों में पुकारा जाने लगा।
1.गौड़ क्षेत्र, 2.द्रविड़ क्षेत्र
इन विभक्त क्षेत्रों में रहने वाले लोग आपस में दूसरे क्षेत्र में रहने वालों को पहचान के तौर पर क्षेत्र के नाम से पुकारने लगे, जैसे गौड़ क्षेत्र में रहने वाले ब्राह्मणों को गौड़ ब्राह्मण तथा द्रविण क्षेत्र में रहने वालों को द्राविड़ ब्राह्मण ?
-ःगौड़ ब्राह्मणस्य भेदाः-
इन क्षेत्रीय नामों से उत्तरी भारत (गौड़ देश) के अन्तर्गत रहने वाले गौड़ ब्राह्मणों को 5 (पाँच) भिन्न-भिन्न स्थानीय नामों से पुकारा गया, जो बाद में गौड़ ब्राह्मणों के पांच भेद हुए।
श्लोक-
सारस्वताः कान्यकुब्जा गौड़ मैथिल उत्कलाः।
पंच गौड़ा इतिख्याता विन्ध्यस्योत्तरवासिनः।। ब्राह्मण उत्पत्ति मारतण्ड
अर्थ- सारस्वत, कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिल उत्कल नाम से पाँचों को पंच गौड़ कहा जाता है क्योंकि एक ही गौड़ वंश के लोग भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में रहने से उस क्षेत्र के नाम से जाने गए |
1. सरस्वती नदी के आसपास के क्षेत्र में रहने वाले सारस्वत ब्राह्मण कहाए। 2.कन्नौज अथवा उसके अन्तर्गत जितना भी क्षेत्र आता था, उस क्षेत्र में रहने वालों को कान्यकुब्ज ब्राह्मण कहा गया। 3.मिथिलांचल में रहने वालों को मैथिल ब्राह्मण पुकारा जाने लगा। 4.उत्कल प्रदेश के रहने वाले उत्कल ब्राह्मण तथा शेष क्षेत्र-वासियों को गौड़ ब्राह्मण नाम से पुकारा जाने लगा।
इस प्रकार एक ही ब्राह्मण वंश के लोगों को अलग-अलग क्षेत्रों में बसने के कारण अलग-अलग नामों से पुकारा जाने लगा और एक ही ब्राह्मण वंश के पाँच भेद उत्पन्न हुए। पाँचों को पंचगौड़ कहा जाता है।
-ःद्राविड़ ब्राह्मणस्य भेदाः-
जिस प्रकार गौड़ क्षेत्र में क्षेत्रीय कारणों से एक ही ब्रह्म वंश के पांच विभिन्न नाम हुए, ठीक ऐसा ही द्राविड़ क्षेत्र में हुआ, वहां क्षेत्रीय नामों से पुकारने के कारण उसी एक ब्राह्मण वंश के अलग-अलग पांच भेद बन गये ?
श्लोक-
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविड़ महाराष्ट्र गुर्जराः।
पंच द्राविड़ इतिख्याता विन्ध्यस्य दक्षिणवासिनः।। ब्राह्मण उत्पत्ति मारतण्ड
अर्थः- विन्ध्याचल से दक्षिण भाग में रहने वाले द्राविड़ ब्राह्मणों के पांच भेद हुए।
कर्नाटक प्रान्त में रहने वाले ब्राह्मण, कर्नाटक ब्राह्मण कहलाए। तेलगु प्रान्त के रहने वालों को तेलंग ब्राह्मण, महाराष्ट्र प्रान्त में रहने वालों को महाराष्ट्र ब्राह्मण, गुजरात प्रान्त में रहने वालों को गुर्जर ब्राह्मण पुकारा जाने लगा। शेष क्षेत्र के रहने वाले ब्राह्मण द्राविड़ ब्राह्मण नाम से विख्यात हुए। इन पाँचों का पंच द्राविड़ कहा जाता है।