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  • मैथिल ब्राह्मणों के मूल

    मिथिला से कर्णाट वंश के अन्तिम शासक श्रीमान महाराज हरीसिंह देव जी ने हिजरी सम्वत 812 से 820 के मध्य काल मैथिल ब्राह्मण वंश की सूची बनाने व शुद्धता रखने के उद्देश्य से पंजीकरण किया, उस समय  महाराज कई-कई विद्वान पंडितों को साथ लेकर गांव-गांव गए और प्रत्येक मैथिल परिवार में स्वयं जाकर उनकी पंजी चढाई उस समय जो परिवार जिस गांव में रहता था। वह गांव उनका मूल कहलाया। यदि किसी ने कहा कि हम इस गांव के मूल निवासी नहीं है, हम उक्त ग्राम से आकर यहां रहने लगे हैं, उस दशा में उस व्यक्ति का पूर्व ग्राम उसका मूल माना गया, बाद में महाराज जी ने इस काम के लिए अपने सहयोगी पंडितों को नियुक्त किया, जिनके वंशधर आज तक पंजीकार कह जाते हैं और पंजियां चढाना, जातिय, गोत्र, प्रवर, शिखा, शाखा, सूत्र आदि का लेखा रखना मुख्य व्यवसाय है। आदि मैथिल ब्राह्मण वंश में अब भी विवाहादि अवसरों पर मूल जाना जाता है इसी मूल का पर्यायवाची खेड़़ा शब्द है, जो प्रवासी मैथिल समाज में प्रचलित है।  हम यहां मैथिल ब्राह्मणों के मूल गोत्रानुसार वर्णन करते हैं।

     शाण्डिल्य गोत्र के मूल

         1.दीधो, 2.सरिसव, 3.जजिवाल, 4.पबोली, 5.खंडवला, 6.गंगोली, 7.सोदरपुर, 8.महुआ, ’9.जमगाय, 10.करिअन, 11.सुअरी, 12.सझुआर, 13.मराढ़, 14.पंडोल, 15.दहिमत, 16.तिलहू, 17.माहर, 18. सिम्बलाम, 19. सिंहाश्रम, 20.करहिया, 21. अल्लारि, 22.कोइआर, 23.तल्हनपुर, 24.परिसरा, 25.परसेडा, 26.बीरनाम, 27.उत्तमपुर, 28.कोदरिया, 29.छतिमून, 30.बरेबा, 31.मछत्राल, 32.गंगौर, 33.भटौर, 34.बधौर, 35.ब्रह्मपुर, 36.करहिया, 37.गंगुआल, 38.घोसिआम, 39.छतौनी, 40.ननौती, 41.भिगुआल, 42.तपनपुर, 43.होइआर, 44.अहुपुर

    वत्स गोत्र के मूल

         1.पाली, 2.टड्कवा, 3.हरिअम्ब, 4.घोसौत, जल्लकी, 6.करमहा, 7.बुधवाल, 8.तिसऔत, 9. बहेराढ़ा, 10.अलई, 11.बम्भआम, 12.उजली, 13.फनन्द, 14.शंकोना, 15.तिसुरी, 16.राओढ़, 17.जुआड़, 18.पोहद्दी, 19.भरवाल, 20.कोइआर, 21.करहिआ, 22.ननोर, 23.डढहार, 24.मराढ़, 25.लाही, 26.सौनी, 27.मौहरी, 28.बन्धवाल, 29. बरूआली, 30.पंडोल, 31.बरेबा, 32. भंडारिसम, 33.तपनपुर, 34.बिठुआर, 35. नरवाल, 36.चित्रपल्ल, 37.जरहटिया, 38.रतनाल, 39.ब्रह्मपुरा, 40.सरौनी

    काश्यप गोत्र के मूल

         1.मान्डरि, 2.दरिहरा, 3.खोआड़, 4.संकराठी, 5.बलिआस, 6.सतलखा, 7.मन्डुआ, 8.विपसी, 9.आइनी, 10.जगती, 11.पचाओत, 12.कटायी, 13.मालिछ, 14.मेरन्दी, 15.मदुआल, 16.बुधवाल, 17.पकलिया, 18.पिभुआ, 19.मौरी, 20.जनकभुतहरी, 21.छादन, 22.थरिया, 23.दोसती, 24.भरेहा, 25.कुसुमाल, 26.नरवाल, 27.लगुड़दह, 28.दहला, 29.सुमिरहा

    पाराशर गोत्र के मूल

         1.नरओन, 2.सुरगणे, 3.सकुरी, 4.सुअरी, 5.सम्बुआल, 6.पिहबाल, 7.नदाम, 8.महेसारी, 9.सौनी, 10.सकरहोल, 11.तिलयी,  12.बरेबा

    कात्यायन गोत्र के मूल

         1.कुजौली, 2.ननौती, 3.जल्लकी, 4.रतिगाम

    भारद्वाज गोत्र के मूल

         1.बेलओच, 2.एकहरा, 3.देआम, 4.कलिगाम, 5.भुतहरी, 6.गोढार, 7.दमकटारि, 8.सौनीं, 9.धनौली, 10.बरेबा

    सावर्ण गोत्र के मूल

         1.पनिचोभ, 2.सोन्दरपुर, 3.बरेबा, 4.ननोर, 5.मेरन्दी

    गार्ग्य गोत्र के मूल

         1.बसहा, 2.बसामय, 3. ब्रह्मपुरा, 4.सुरौरी, 5.बुधौरा, 6.ओड़िया

    कौशिक गोत्र के मूल

         केवल एक ही मूलः निकुती

    कृष्णात्रेय गोत्र के मूल

         1.अलहोना, 2.वसुवल, 3.सान्द्रपदौली

    गौतम गोत्र के मूल

         1.ब्रह्मपुरा, 2.उत्तमपुर, 3.कोइआर, 4.बुधौरा, 5.औरिबा, 6.खण्डबला, 5.पण्डुआ

    मौदगल्य गोत्र के मूल

         1.रतवाल, 2.मालिछ, 3.दोघो, 4.जल्लकी, 5.मैनी

    वसिष्ठ गोत्र के मूल

         1.नानपुर, 2.पड़ौलि, 3.बरेबा, 4.कौथुआ, 5.वृष्टिबाल

    कौण्डिल्य गोत्र के मूल

         1.कौथुआ, 2.नरओन, 3.एकहरा

    विष्णुवृद्वि गोत्र के मूल

         केवल एक मूल कौथुए।

     उपरोक्त सूची में कई ग्रामों के नाम ऐसे हैं, जो एक से अधिक गोत्रों के साथ अंकित हैं, इसका अर्थ है कि उक्त ग्रामों में भिन्न-भिन्न गोत्र के कई परिवार रहते थे इसलिए एक ग्राम का कई गोत्रों से सम्बन्ध हुआ है।

    नोटः- कई सौ वर्ष व्यतीत होने पर देखा गया कि कुछ परिवार अपना मूल स्थान त्याग अन्य-अन्य स्थानां में जा बसे, कुछ परिवारों ने जीविका उपार्जन हेतु अपना मूल स्थान त्याग दिया और कई पीढ़ी तक उनका पता ही नहीं चला, जनसंख्या बढ जाने से भी सामाजिक व्यवस्था व ढांचे में परिवर्तन आ गया था, जिसके फलस्वरूप पंजी व्यवस्था जीर्ण एवं छिन्न-भिन्न हो गई थी जिसको कि मैथिल वंश के अन्तिम शासक श्रीमान महाराजधिराज डा0 कामेश्वर सिंह जी ने अपने अथक प्रयासों से नव जीवन प्रदान किया और गांव-गांव नगर-नगर जा जाकर भूले बिछड़े सभी मैथिल वंश को पुनः एक पंजी सूत्र में बांध दिया। इस नवीन पद्वति के अनुसार कुछ मूल ग्राम और बढ गए हैं।