जिन गोत्रों का सामवेद है, उनकी कौथुमी शाखा और गोभिल सूत्र है। वामशिखा अर्थात् बांये ओर घुमाकर शिखा में गांठ देना और बांये पाद अर्थात् यज्ञादि शुभ कार्य में वाम चरण प्रथम पक्षालन करना तथा गांधर्व उपवेद और विष्णुदेवता है।
जिन गोत्रों का यजुर्वेद है, उनकी धनुर्वेद उपवेद है और माध्यान्दिनी शाखा, कात्यायन सूत्र, दक्षिण शिखा अर्थात् शुभ कार्य में दाहिनी ओर घुमाकर शिखा में गांठ देना और दक्षिण पैर धोना और शिव देवता है। गायत्री गुरू मंत्र है।
1.वाजसनेयि पद्वतिः वाजसेनिय संहिता की रीति के अनुसार जो ब्राह्मण संस्कार करते हैं, वे वाजसनेयि कहलाते हैं।
2.छन्दोग पद्वतिः देवादत्य ठाकुर के पुत्र वीरेश्वर ठाकुर ने छंदोगपद्वति नामक ग्रन्थ की रचना की जिसे मिथिला में विवाह संस्कार के लिए अब भी प्रमाणित माना जाता है।
3.कात्यायन सूत्रः कात्यायन कात्यायनी नाम की याज्ञवल्क्य की पत्नी का पुत्र था, इन्हीं कात्यायन महर्षि ने कात्यायन स्मृति बनाई। यजुर्वेद के श्रोत सूत्र लिखे। कात्यायन सूत्रों के अनुसार जो कार्य करते हैं वे कात्यायन कहलाते हैं।
4.गोभिल सूत्रः गोभिल सूत्र के अनुसार जो ब्राह्मण कार्य करते हैं।
5.माध्यान्दिन शाखाः यजुर्वेद की माध्यान्दिन शाखा को विशेष महत्व मिला। वह माध्यान्दिन कहलाता है। इस माध्यान्दिन शाखा को जो पढ़ते हैं या जानते हैं, वे माध्यान्दिन कहलाते हैं।
6.कौथुमी शाखाः इसको जो पढ़ते हैं या जानते हैं।