प्रवर
साधारण भाषा में प्रवर का तात्पर्य उन प्राचीनतम ऋषियों से हैं, जो स्वयं गोत्र संस्थापक ऋषियों के पूर्वज थे।
यज्ञादि धार्मिक कृत्यों के अवसर पर इन प्रवर नामों का उच्चारण आवश्यक था, यह प्रथा कदाचित् ऋग्वेद काल में ही प्रतिष्ठित हो चुकी थी। कोषीतकि ब्राह्मण का कथन है कि प्रवर-विहीन यज्ञियों के हव्य को देवता स्वीकार नहीं करते हैं। इसी से प्रत्येक के लिए प्रवर नार्मोच्चारण आवश्यक था। आपस्तम्ब के मतानुसार यदि किसी व्यक्ति को अपना प्रवर ज्ञात न हो तो वह अपने आचार्य का प्रवर का प्रयोग कर सकता है। इस प्रकार के उद्धरणों से ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज में प्रवर का बड़ा महत्व था प्राय, समस्त सूत्रकारों ने सप्रवर विवाह का निषेध किया है। संस्कार प्रकाश में उद्धत आपस्तम्ब के मतानुसार यदि कोई व्यक्ति सप्रवर कन्या के साथ समागम करता है तो वह अपनी जाति से हीन हो जाता है तथा उनकी सन्तान चंडाल होती है। गौतम धर्म सूत्र, वशिष्ठ, धर्मसूत्र तथा शाखापन धर्म सूत्र में सप्रवर कन्या के साथ विवाह वर्जित बताया गया है।
क्रमांक | गोत्र | प्रवर संख्या | नाम प्रवर | वेद |
1 | शान्डिल्य | त्रि प्रवर | शाण्डिल्य, असित, देवल | सामवेद |
2 | वत्स | पंच प्रवर | और्व, च्यवन, भार्गव, जमदग्नि, आल्पवान | सामवेद |
3 | काश्यप | त्रि प्रवर | काश्यप, वत्स, नैधु्रव | सामवेद |
4 | पाराशर | त्रि प्रवर
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पाराशर, शक्ति, वसिष्ठ | यजुर्वेद |
5 | भारद्वाज | त्रि प्रवर | भारद्वाज, अंगिरस, वार्हस्पत्य | यजुर्वेद |
6 | कात्यायन | त्रि प्रवर | कात्यायन, विष्णु, अंगिरस | यजुर्वेद |
7 | गौतम | त्रि प्रवर | अंगिरा, वसिष्ठ, गार्हस्पत्य | यजुर्वेद |
8 | कृष्णात्रेय | त्रि प्रवर | कृष्णात्रेय आल्पवान, सारस्वत | यजुर्वेद |
9 | गार्ग्य | पंच प्रवर | गार्ग्य, धृतकौशिक, मांडव्य, अथर्व, वैशम्पायन | यजुर्वेद |
10 | विष्णुवृद्धि | त्रि प्रवर | विष्णुवृद्वि, च्यवन, वार्हस्पत्य | यजुर्वेद |
11 | सावर्णि | पंच प्रवर | और्व, च्यवन, भार्गव, जमदग्नि, , अल्पवान | सामवेद |
12 | कौशिक | त्रि प्रवर | कौशिक, अत्रि जमदग्नि | सामवेद |
13 | वसिष्ठ | त्रि प्रवर | वसिष्ठ, अत्रि, सांकृति | यजुर्वेद |
14 | कौण्डिन्य | त्रि प्रवर | कौण्डिन्य, आस्तीक, कौशिक | यजुर्वेद |
15 | मौद्गल | त्रि प्रवर | मौदगल, अंगिरस, वार्हस्पत्य | यजुर्वेद |