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  • मैथिल ब्राह्मणों के विशिष्ट व्यक्ति

    1. मधुसूदन ओझा
    2. रूपराम शर्मा ‘‘रूपवियोगी’’
    3. प्रेमदत्त मिश्र ‘‘मैथिल’’
    4. पं0 घूरेलाल मिश्र (बाबा जयगुरूदेव के गुरू)
    5. लक्ष्मीकान्त झा, आई0सी0एस0 रिजर्व बैंक, गर्वनर, जम्मू कश्मीर
    6. ललित नारायण मिश्रा, पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार, पूर्व रेल मंत्री
    7. जगन्नाथ मिश्रा, पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार
    8. विनोदानन्द झा, पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार
    9. उदित नारायन, पाश्र्वगायक
    10. आदित्य नारायन, अभिनेता, पाश्र्वनायक
    11. मैथिली ठाकुर- पाश्र्व गायक
    12. प्रो0 डा0 फूल बिहारी शर्मा
    13. चन्द्रमोहन झा, आई0ए0एस0, चन्द्रशेखर झा, आई0सी0एस0, मदन झा आई0ए0एस0
    14. सुबोधनाथ झा (आई0ए0एस0)
    15. नवीन कुमार चौधरी (आई0ए0एस0), आलोक रंजन झा (आई0ए0एस0)
    16. वेदराम वेदार्थी
    17. विनोद झा आई0ए0एस0 (उडीसा काडर), वी0एन0 झा आई0ए0एस0 (बिहार काडर), विनय झा आई0ए0एस0 (बिहार काडर), अशोक कुमार आई0ए0एस0 (आन्ध प्रदेश काडर)
    18. स्वामी ब्रह्मनन्द सरस्वती
    19. सर हर गोविन्द मिश्र, भूतपूर्व सदस्य विधान परिषद
    20. पं0 फूलचन्द्र मिश्र, आनरेरी मजिस्ट्रेट

    1.मधुसूदन ओझा

    विद्यावाचस्पति श्री ओझा का जन्म सन् 1866 ई0 में मुजफ्फरपुर जिले (अब सीतामढ़ी) के गाढ़ा नामक ग्राम में हुआ था। काशी में दरभंगा संस्कृत विद्यालय में महामहोपाध्याय शिवकुमार शास्त्री की देखरेख में विद्याध्ययन आरम्भ हुआ। लगनशील एवं ज्ञान पिपासु छात्र ने आठ वर्षों के अध्ययन काल में न्याय, वेदान्त, मीमांसा आदि शास्त्रों पर असाधारण अधिकार कर लिया। अध्ययनोपरान्त आप अपनी जन्मभूमि मिथिला आए, जहाँ 17 वर्ष की आयु में इनका विवाह अलवर के तत्कालीन राजगुरू पं0 चंचल झा की सुकन्या से सन् 1883 ई0 में हो गया।

    विदेश यात्रा-             सन् 1902 में सम्राट सप्तम एडवर्ड के राज्याभिषेक के अवसर पर ये जयपुर नरेश के साथ लंदन गये। इस समारोह में सभी भारतीय नरेशों को भी आमंत्रित किया गया था। इस अवसर पर पं0 मधुसूदन ओझा ने पाश्चात्य मनीषियों के समक्ष सारगर्भित भाषण दिया। पं0 मधुसूदन ने राज्याभिषेक के समय श्लोक बद्ध पद्यों में सम्राट एडवर्ड की संस्तुति की थी, जिससे प्रसन्न होकर सम्राट ने इन्हें एक स्वर्ण पदक तथा प्रशस्ति पत्र दिया था।  

    कृतियां-    आपने सौ से अधिक ग्रन्थों की रचना की, उनमें निम्न प्रमुख है- 1.जगद्गुरू वैभव, 2.इन्द्रविजय, 3.सदसद्वाद, 4.व्योमवाद, 5.अपरवाद, 6.आवरणवाद, 7.अम्भोवाद, 8.अहोरात्रवाद, 9.संशयत दुच्छेद वाद, 10.दशवाद रहस्य 11.गीता विज्ञान, 12.शारीरिक विमर्श, 13.विज्ञान विद्युत, 14.ब्रह्म विज्ञान प्रवेशिका, 15.ब्रह्म विज्ञान, 16.ब्रह्म चतुष्पदी, 17.ब्रह्म समन्वय, 18.देवतानिवत्। इनके अतिरिक्त बारह ग्रन्थ और प्रकाशित है, 47 अमुद्रित है। इनका कादम्बिनी ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।

     

    2.रूपराम शर्मा ‘‘रूपवियोगी’’

    ‘‘रूप वियोगी’’ उपनाम से विख्यात लोक संगीत सम्राट, ब्रज रत्न कविवर श्री रूपराम शर्मा का जन्म सन् 1895 ई0 में मथुरा जनपद (सम्प्रति) हाथरस के ग्राम सलेमपुर में प्रवासी मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। आपके पिता का नाम पं0 प्रानसुख था। श्री रूपराम जो दो वर्ष के अबोध बालक थे, तभी उनकी मां का निधन हो गया। माँ की मृत्युपरान्त आपकी दादी ने आपका लालन पोषण किया। बाल्यकाल से आपकी अभिरूचि संगीतों में अधिक थी। अध्ययनकाल में ही आपने ‘अहिरावणवध और लंकादहन’ दो संगीत लिखे थे। आपने महर्षि दयानन्द को अपना गुरू और सत्यप्रकाश को अपना मार्गदर्शक मान लिया।

    आप सन् 1920 में म्यूनिसपल बोर्ड के स्कूल हाथरस में अध्यापक नियुक्त हुए। संयोग से एक दिन संगीत कला के मर्मज्ञ पं0 नथाराम शर्मा गौड़ से आपकी भेंट हुई। आपने स्वरचित दो संगीत अहिरावणवध और लंकादहन  श्री नथाराम गौड़ को दिखाये। उन दोनों संगीतों को लेकर पं0 नथाराम ने उनके बदले में सात माह के वेतन के बराबर रूपये दिये और चलते समय श्री रूपराम से रामायण और महाभारत पर संगीत लिखने को कहा। बाद में नौकरी छोड़कर संगीत लिखने लगे। 25 भागों में रामायण पर और 35 भागों में महाभारत पर संगीत रचे। श्री रूपराम द्वारा दिये गये वचन के अनुसार संगीत पुस्तक के मुख पृष्ट पर उनका नाम प्रकाशित नहीं किया गया। नथाराम गौड़ का नाम ही अंकित हुआ। संगीत के अंत में रूप नाम लिखा गया। रूपकवि ने पं0 नथाराम और उनके पुत्र राधाबल्लभ को 289 पुस्तकें प्रकाशित करने का अधिकार दिया था।

    विविध रचनाएँ–   50 से अधिक की हैं। इनके अतिरिक्त कथा काव्य, आल्हा तर्ज साहित्य, अन्य पुस्तकें, भजन पुस्तकें, इतिहास प्रकाशित पुस्तकें लिखी। सब पुस्तकों की संख्या 413 के आसपास पहुँचती है। 80 वर्ष तक आप निरन्तर लिखते रहे। सन् 1980 ई0 में आपने इस संसार से विदा ली।

     

    3.प्रेमदत्त मिश्र ‘‘मैथिल’’

    कवि, कथा, नाटक, निबन्ध लेखक तथा सम्पादक श्री मैथिल का जन्म 19 जनवरी सन् 1939 ई0 को तत्कालीन मथुरा जनपद सम्प्रति हाथरस जनपद के गांव रसगवां के मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। आपके पूर्वज मुस्लिम शासनकाल में मिथिला से आकर ब्रज खेत्र में आ बसे थे। आपने प्राच्यदर्शन महाविद्यालय वृन्दावन से संस्कृत में एम0ए0 किया। सन् 1970 ई0 में मैथिल जी ने आर0वी0 कॉलेज आगरा से हिन्दी में एम0ए0 उत्तीर्ण किया। सन् 1971 में बी0एड0 कर आप श्रीकृष्ण चैतन्य हाईस्कूल (सम्प्रति इण्टर कॉलेज, नंदगांव मथुरा) में संस्कृत अध्यापक नियुक्त हुए। सन् 1975 ई0 में आपने प्राचीन भारतीय इतिहास तथा संस्कृति से एम0ए0 किया तथा सन् 1992 में पी-एच0डी0 की।

    रचनाएँ-    1.राही, 2.शंखनाद, 3.सुगन्धा, 4.मर्म व्यथा, 5.चुभन आदि जयतु भारतम्, श्री कृष्णावदानम्, श्रमिक कृषक शतकम् एवं श्रभ् रामरसायनम्।

    काव्य संग्रह-     1.चण्ड, 2.स्मृति, 3.चरवाहा 4.तपस्विनी 5.कृषक 6.समर्पितात्मा लघु काव्य

    ब्रजभाषा की रचनाएँ–   1.प्रेमशतक (110 दोहों का संग्रह)

    ऐतिहासिक गद्य कृतियां-    1.नन्दगांव का सांस्कृति परिचय, 2.बरसाना वृत

    सम्पादित ग्रन्थ-  सूरसिन्ध, सूरसमस्यावली, महाभारत, श्रीकृष्ण चरित, मोहन काव्य सुधा, बल्लभ काव्य सुधा आदि।

     

    4.पं0 घूरेलाल मिश्र (बाबा जयगुरूदेव के गुरू)

    श्री मिश्र का जन्म ग्राम चिरौली जनपद अलीगढ़ में 11 दिसम्बर सन् 1883 ई0 को पं0 भोलाराम मिश्र के यहाँ हुआ था। आपकी माता का नाम पार्वती देवी थ। एक बार इनके अग्रज पं0 घासीराम (परम संत स्वामी विष्णुदयाल जी) इन्हें स्वामी बाग ले गये। वहां के बाबा गरीबदास ने इन्हें शिष्य बना लिया और राधास्वामी मत में दीक्षित किया। आप ज्योतिष के प्रकाण्ड पण्डित थे। आप 36 वर्ष की आयु में सन्यासी हो गये।

                आपके प्रमुख शिष्य संत तुलसीदास (वर्तमान जय गुरूदेव) हैं। श्री मिश्र की विशाल समाधि दिल्ली आगरा मार्ग पर महौली ग्राम के निकट विद्यमान है। इस पर प्रतिवर्ष मेला लगता है जिसमें लाखों व्यक्ति आते हैं। गुरू समाधि स्थल का निर्माण आपने प्रमुख शिष्य संत तुलसीदास (वर्तमान जय गुरूदेव) करा रहे हैं। इनके जीवन की एक चमत्कारिक घटना है कि एक बार जयगुरूदेव अपने गुरू को मथुरा ले आये और यमुना किनारे पर्णकुटी में ठहराने लगे। गुरू पं0 घूरेलाल जी महाराज ने उस झोपडी को उस स्थान से हटवाकर कृष्णा नगर में स्थापित कराया। प्रातः काल यमुना में भीषण बाढ़ देखकर सभी शिष्य हतप्रभ रह गये कि गुरूजी ने झोपड़ी नहीं हटवायी होती तो सभी काल-कवलित हो जाते। इनके अन्य शिष्य पं0 गंगाराम पाण्डेय, पं0 रामकृष्ण पाण्डेय, पं0 कमलाशंकर मिश्र, दीपचन्द्र शर्मा, श्रीमती चम्पा देवी, बाबूराम पालीवाल, चिरंजीलाल पचौरी, श्रीमती गायत्री देवी, लक्ष्मणदास शर्मा, रामचन्द्र शर्मा एवं स्वामी चन्द्रभान दास थे। परम संत घूरेलाल मिश्र का 11 दिसम्बर 1948 ई0 को निधन हो गया। आपके तीन पुत्र हैं।

     

    5.लक्ष्मीकान्त झा, आई0सी0एस0 रिजर्व बैंक, गर्वनर, जम्मू कश्मीर

     लक्ष्मी कांत झा (22 नवम्बर 1913-16 जनवरी 1988) (जन्म: दरभंगा,बिहार  जिन्हें एल के झा के नाम से जाना जाता था, 1 जुलाई 1967 से लेकर 3 मई 1970 तक[2] भारतीय रिज़र्व बैंक के आठवें गवर्नर थे। भारतीय सिविल सेवा के 1937 बैच के सदस्य झा ने आपूर्ति विभाग ने उप सचिव का पद हासिल किया। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में उनकी नियुक्ति पहले उन्होंने प्रधानमंत्री के सचिव के रूप में सेवा की। उनके कार्यकाल में महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में 2 अक्टूबर 1969 को  2, 5, 10 और 100 के मूल्यवर्ग के भारतीय नोट, जारी किये गए थे। इन नोटों पर उनके हस्ताक्षर हैं, जबकि इसके बाद वाली नोटों की श्रृंखला पर बी एन आदरकार के हस्ताक्षर हैं।

     

    6.ललित नारायण मिश्रा, पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार, पूर्व रेल मंत्री

    ललित नारायण मिश्र 1973 से 1975 तक भारत के रेलमंत्री थे। 3 जनवरी 1975 को समस्तीपुर बम-विस्फोट कांड में उनकी मृत्यु हो गयी थी। वह पिछड़े बिहार को राष्ट्रीय मुख्यधारा के समकक्ष लाने के लिए सदा कटिबद्ध रहे। उन्होंने अपनी कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए पूरी तन्मयता से प्रयास किया। विदेश व्यापार मंत्री के रूप में उन्होंने बाढ़ नियंत्रण एवं कोशी योजना में पश्चिमी नहर के निर्माण के लिए नेपाल-भारत समझौता कराया। उन्होंने मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में प्रचारित कर उसकी अलग पहचान बनाई। मिथिलांचल के विकास की कड़ी में ही ललित बाबू ने लखनऊ से असम तक लेटरल रोड की मंजूरी कराई थी, जो मुजफ्फरपुर और दरभंगा होते हुए फारबिसगंज तक की दूरी के लिए स्वीकृत हुई थी। रेल मंत्री के रूप में मिथिलांचल के पिछड़े क्षेत्रों में झंझारपुर-लौकहा रेललाइन, भपटियाही से फारबिसगंज रेललाइन जैसी 36 रेल योजनाओं के सर्वेक्षण की स्वीकृति उनकी कार्य क्षमता, दूरदर्शिता तथा विकासशीलता के ज्वलंत उदाहरण है।

    ललित बाबू को अपनी मातृभाषा मैथिली से अगाध प्रेम था। मैथिली की साहित्यिक संपन्नता और विशिष्टता को देखते हुए 1963-64 में ललित बाबू की पहल पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उसे ‘साहित्य अकादमी‘ में भारतीय भाषाओं की सूची में सम्मिलित किया। अब मैथिली संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में चयनित विषयों की सूची में सम्मिलित है।

     

    7.जगन्नाथ मिश्रा, पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार

     डा॰ जगन्नाथ मिश्र  (24 जून 1937 – 19 अगस्त 2019) भारतीय राजनेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री थे। डा॰ मिश्र ने प्राध्यापक के रूप में अपना करियर शुरू किया था और बाद में बिहार विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। डा॰ मिश्र तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके थे। उनकी रूचि सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में बचपन से ही थी। उनके बड़े भाई ललित नारायण मिश्र एक प्रख्यात कुशल राजनीतिज्ञ थे जो कालक्रमेण रेल मंत्री बने। डा॰ मिश्र विश्वविद्यालय में पढ़ाने के दौरान ही अभिरूचानुसार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए थे। डा॰ मिश्र 1975 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। दूसरी बार उन्हें 1980 में कमान सौंपी गई और आखिरी बार 1989 से 1990 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। वे 1995-96 में अपनी राजनीतिक कुशलता के फलस्वरूप केन्द्रीय मंत्री भी बने थे। सम्पूर्ण भारत विशेषकर बिहार में डा॰ मिश्र का नाम बड़े नेताओं के रूप में जाना जाता रहा। कांगे्रस छोड़ने के बाद वह राष्ट्रवादी कांगे्रस पार्टी और फिर जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हो गये। 30 सितम्बर, 2013 को रांची में एक विशेष केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने चारा घोटाले में 44 अन्य लोगों के साथ उन्हें दोषी ठहराया। उन्हें चार साल की कारावास और 200,000 रूपये का जुर्माना लगाया गया था। 23 अक्टूबर, 2013 को झारखण्ड उच्च न्यायालय ने उन्हें बेल दिया था। हालांकि बाद में सीबीआई की विशेष न्यायालय द्वारा उन्हें दो मामलों में 23 दिसम्बर, 2017 तथा 19 मार्च, 2018 को बरी [2] कर दिया जबकि झारखण्ड उच्च न्यायालय में अन्य दो मामले अपील संख्या (Cr. App. (SJ) 838 – 2013 तथा Cr. App. (SJ) 268 – 2018 लंबित है।

    व्यक्तिगत जीवन

    जन्म: 24 जून, 1937 (सुपौल) निधन: 19 अगस्त, 2019 नई दिल्ली

    पुत्र-तीन और पुत्रियाँ -तीन

    रूचि

    पठन-पाठन व लेखन

    विद्यालयी शिक्षा

    बलुआ बाजार (सुपौल बिहार)

    बी॰ए॰ (ऑनर्स), टी॰एन॰बी॰ कॉलेज (भागलपुर), एम॰ए॰ (अर्थशास्त्र) एल॰एस॰ कॉलेज (मुजफ्फरपुर), पी॰एचडी॰ (पब्लिक फिनान्स) बिहार विश्वविद्यालय से।

    लेखन के क्षेत्र में उपलब्धियाँ

    निबंधन लेखन एवं शोध-मार्गदर्शन – ख्याति प्राप्त पत्रिकाओं में लगभग 40 शोध पत्र लिखे। उनके अधीन उनके निर्देशन में 20 विद्वानों ने अर्थशास्त्र विषय में पी॰एचडी॰ उपाधि प्राप्त की। इनके द्वारा लिखित अबतक 23 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।

    ग्रंथ लेखन एवं सम्पादन का विवरण – लिखित एवं सम्पादित प्रकाशित ग्रंथः

    (1) सार्वजनिक वित (2) मनी, बैंकिग एण्ड इन्टरनेशनल ट्रेड (3) लैण्ड रिफार्मस इन बिहार (4) एग्रिकल्चर मार्केटिंग इन बिहार (5) इन्डस्ट्रीयल फिनान्स इन बिहार (6) आर्थिक सिद्धांत और व्यावसायिक संगठन (7) ट्रेन्डस इन इन्डियन फेडरल फिनान्स (8) कॉपरेटिव बैंकिंग इन बिहार (9) दिशा संकेत (10) इन्डियाज इकॉनोमिक डेवलपमेंट (11) फिनांसिंग ऑफ स्टेट प्लान्स (12) भारतीय आर्थिक विकास की नयी प्रवृतियां (13) प्लैनिंग एण्ड रिजनल डेवलपमेंट इन इन्डिया (14) न्यू डाइमेनसन्स ऑफ फेडरल फिनान्स (15) बिहार की पीड़ा से जुड़िए (16) भारतीय संघ की वित्तीय प्रवृतियाँ (17) माई विजन फॉर इन्डियाज रूरल डेवलेपमेंट (18) चिन्तन के आयाम (19) बिहार: विकास और संघर्ष। (20) समग्र विकास: एक सोच (21) लेबर इकोनोमिक्स (22) ए क्रिटिक ऑफ द इकोनामिक्स आॅफ कीइन्स एण्ड केनिसियन थ्योरी एवं (23) बिहार बढ़कर रहेगा।

    राजनीतिक जीवन

    1966 से बिहार विश्वविद्यालय के सिंडिकेट और सिनेट में कई बार सदस्य निर्वाचित हुए। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कोर्ट एवं जे॰एन॰यू॰ के कोर्ट में भी दो बार सदस्य चुने गये। 1968 में पहलीबार मुजफ्फरपुर, चम्पारण एवं सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधान परिषद् के सदस्य निर्वाचित हुए। 1969 में राष्ट्रपति के ऐतिहासिक चुनाव में पूर्व रेल मंत्री श्री ललित नारायण मिश्र के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में बिहार में महत्वपूर्ण कार्य किया था। 1972, 1977, 1980, 1985 और 1990 में मधुबनी जिला के झंझारपुर से बिहार विधान सभा के लिए निरंतर सदस्य निर्वाचित हुए। 1972 में पहलीबार स्व॰ केदार नाथ पाण्डेय की सरकार में मंत्री बने। अब्दुल गफूर के मंत्रिमंडल में भी मंत्री नियुक्त हुए। 8 अप्रैल, 1975 को बिहार के पहलीबार मुख्यमंत्री हुए और 30 अप्रैल, 1977 तक उस पद पर बने रहे। 8 जून, 1980 को बिहार के दूसरी बार मुख्यमंत्री हुए जिस पद पर वे 13 अगस्त, 1983 तक बने रहे। तीसरीबार वे 6 दिसम्बर, 1989 को मुख्यमंत्री हुए जिस पर वे 10 मार्च, 1990 तक बने रहे। मार्च, 1989 में वे बिहार प्रदेश कांगे्रस कमिटी के अध्यक्ष नियुक्त हुए दुबारा वे अप्रैल, 1992 में बिहार प्रदेश कांगे्रस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1978 में श्रीमती इन्दिरा गांधी के साथ कांगे्रस विभाजन में उनके पक्ष में सक्रिय भूमिका निभायी। 1978 में बिहार विधान सभा में पहलीबार प्रतिपक्ष के नेता निर्वाचित हुए। दूसरीबार मार्च, 1990 में बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता निर्वाचित हुए। 1988 के अप्रैल में राज्यसभा के लिए सदस्य निर्वाचित हुए। दूसरीबार अप्रैल, 1994 में वे राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 10 जून, 1995 को वे स्व॰ पी॰वी॰ नरसिंह राव मंत्रिमंडल में ग्रामीण विकास मंत्री नियुक्त हुए और जनवरी, 1996 में उन्हें कृषि मंत्री का प्रभार दिया गया जिस पद पर वे 16 मई, 1996 तक बने रहे।

    8.विनोदानन्द झा, पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार

     

    9.उदित नारायन, पाश्र्वगायक

     उदित नारायण झा एक प्रसिद्ध भारतीय-नेपाली पार्श्वगायक हैं। वे नेपाल और भारत में एक प्रख्यात गायक के रूप में जाने जाते हैं। नेपाली फ़िल्म में उन्होंने बहुत हिट गाने गाए हैं और उनका गीत अधिकतर लोगों को पसन्द है। उन्हें तीन देशीय पुरस्कार तथा पांच फिल्म फेयर पुरस्कार मिले हैं। वर्ष 2009 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया।

    उदित नारायण का जन्म 1 दिसंबर 1955 को बिहार के सुपौल जिले में हुआ। उन्होंने अपना पहला हिन्दी गाना मोहम्मद रफी के साथ गाया। उनके स्वर में जादू है। वे किशोर अवस्था से ही गायन कला के क्षेत्र में लग गये थे जो कि आज इस मुकाम पर है। संपूर्ण बॉलीवुड में उन्हें आज भी एक बेहतर गायक माना जाता है। नेपाल में अभी के समय में भी उनके स्वर से तुलना किसी भी गायक से नहीं की जा सकती है।

    उदित की मातृभाषा मैथिली हैं और वो बिहार के मिथिलांचल इलाके से आते हैं। जैसे कि नेपाल और भारत के बीच बेटी और रोटी का सम्बन्ध है उसी तरह उनका ननिहाल भारत के बिहार राज्य में है|

    पुरस्कार

    फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार

    वर्ष गीत फिल्म संगीत निर्देशक गीतकार
    1989 “पापा कहते हैं” क़यामत से क़यामत तक आनंद-मिलिंद मजरुह सुल्तानपुरी
    1996 “मेहंदी लगा के रखना” दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे जतिन-ललित आनंद बख्शी
    1997 “परदेसी परदेसी” राजा हिन्दुस्तानी नदीम-श्रवण समीर
    2000 “चाँद छुपा बादल में” हम दिल दे चुके सनम इस्माइल दरबार महबूब
    2002 “मितवा” लगान ए॰ आर॰ रहमान जावेद अख्तर

    राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार

    वर्ष गीत फिल्म संगीत निर्देशक गीतकार
    2001 “मितवा”
    “जाने क्यों लोग”
    लगान
    दिल चाहता है
    ए॰ आर॰ रहमान
    शंकर-एहसान-लॉय
    जावेद अख्तर
    2002 “जिंदगी खूबसूरत है” जिंदगी खूबसूरत है आनन्द राज आनन्द
    2004 “ये तारा वो तारा” स्वदेश ए॰ आर॰ रहमान जावेद अख्तर

    शेष आगे पृष्ट पर(*)

    (*)—-(अधिक जानकारी के लिए )