” ब्रह्मास्य मुखाज्जज्ञे विप्र स्वायंभुव मनु “
पुरूष सूक्त में ब्राह्मण को ब्रहमा के मुख से उत्पन्न कहा गया है। तैतरीय संहिता में उसे प्रत्यक्ष देवता कहा है। (*)ब्राह्मण विवाह के अनुगामी (*) उपनयन संस्कार के पोषक (*)व संस्कारवान (*) तथा समाज में प्रथम पूज्यनीय होते हैं। लेकिन मिथिला जहाँ जगत जननी जानकी का अवतरण हुया, जिस भूमि पर भगवान राम ने महान योद्धाओं पर न हिलने वाले शिवधनुष को तोड़ घमण्डियों का अहंकार चूर कर, स्वयं वर में सीताजी का वरण किया, उस शक्ति एवं तपयुक्त भूमि के प्रताप से वहाँ के रहने वाले ब्राह्मण भी कर्मकाण्डी, धर्मोपदेशक, ज्योतिष, मीमांसा के ज्ञाता व नीति के मर्मज्ञ विद्वान होने के कारण विशेष सम्मानीय होते हैं।
(*)—-(अधिक जानकारी के लिए )