मैथिल ब्राह्मणों के गोत्र, प्रवर व मूलग्राम
साधारण भाषा में गोत्र किसी व्यक्ति के उस निकटतम पूर्वज का नाम है, जिसके नाम से उसका कुटुम्ब सम्बोधित होता है। समस्त भारत के सम्पूर्ण ब्राह्मण 24 ऋषियों की सन्तान है, जिनमें अकेले 15 ऋषियों की सन्तान (ब्राह्मण) मिथिला में रहते थे, जो मैथिल ब्राह्मण कहलाए। विवाहों में गोत्र (*), प्रवर (*) व मूल (*)का बहुत महत्व है। मैथिल ब्राह्मण वंशों के 6 कुल भेद होते हैं, यथा- श्रोत्रीय, जोग्य, पाँच, गृहस्थ, वेश व गरीब। समस्त मैथिल ब्राह्मणों की निम्न आस्पद होती है, यथा- झा, ओझा, मिश्र, पाठक, ठक्कुर, चैधरी, उपाध्याय, सरस्वती, आचार्य, राय, कुवर, बक्शी (त्रिपाठी) व खाँ (शुक्ल)
मैथिल ब्राह्मण दो ही वेद मानने वाले होते हैं। सामवेद व यजुर्वेद, उसमें भी सामवेदी मैथिल ब्राह्मण कौथुमी शाखा के व यजुर्वेदीयों की माध्यान्दिनी शाखा तथा यह दोनों छान्दोग व वाजसनेयी कहलाते हैं। (*)
(*)—-(अधिक जानकारी के लिए )